Effects of yogasana on body parts : healthcruz |
यह बात बिलकुल सत्य है कि हमारे ऋषि-मुनियों का ज्ञान अथाह था। लेकिन होता यह है कि हम उनके ज्ञान की पराकाष्ठा की तुलना अपने ज्ञान से करते हैं और उनके ज्ञान को तर्क-वितर्क करके गलत साबित कर देते हैं या फिर पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों की बातें मान लेते हैं। वो कहते हैं कि प्राचीन संतों ने गलत कहा तो हम गलत मान लेते हैं और यदि वे कहते हैं कि तुम्हारे ऋषियों ने सही कहा तो हम सही मान लेते हैं। हम अपने दिमाग को सकारात्मक ढंग से लगाना ही नहीं चाहते। अब हम योग को ही देख लें, लाखों वर्षों से हमारे यहाँ यह परंपरा चली आ रही थी। हमने कई दशक पूर्व से अपने अज्ञान, आलस्य के कारण योगासनों में ध्यान देना बंद कर दिया था या कोई करता था तो हम हँसते थे और सामने करने वाला भी कई बार इसी कारण से करना छोड़ देता था। अब चूंकि पश्चिमी देश के लोगों ने अपनाना चालू कर दिया तो हमारी भी आँखें खुल गईं।
यह बात सिर्फ़ योगासन की ही थी बल्कि कई बातें हम अभी भी नहीं मानते जैसे महान आत्माओं ने कहा है कि रात्रि भोजन और मद्य, माँस का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसी कई बातें हैं जिन्हें हम अनदेखा कर रहे हैं। अब हम रात्रि भोजन का वैज्ञानिक कारण देखें तो डॉक्टरों का भी कहना है कि सोने से 4 घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए। यदि हम भोजन करके तुरंत सो जाते हैं तो भोजन पचेगा नहीं। रात भर उदर में पड़ा रहेगा, भोजन सड़ेगा। हमारी उदर-क्रिया पूर्ण रूप से विटामिन, प्रोटीन का शोषण और अपना कार्य नहीं कर पाती। पेट को कभी विश्राम ही नहीं मिल पाता। भोजन पच नहीं रहा हो तो वायु विकार उत्पन्न होते हैं, जिससे कई-तरह की बीमारियाँ होने की संभावना रहती है।
अतः आचार्यों ने सोने के चार घंटे पहले भोजन करने को कहा है। यदि हम
यहाँ वैज्ञानिक कारण जानें तो पाएँगे कि हम उन चार घंटों में काफ़ी परिश्रम कर
चुके होते हैं जिससे भोजन को पचने में समस्या नहीं हो पाती।
शाकाहार पर आचार्यों ने बताया कि शाकाहार पूर्णतः सुपाच्य होने के
साथ-साथ हमें शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक ऊर्जा भी प्रदान करता है और हम कई प्रकार के पाप,
दोषों से बच जाते
हैं। हमारे अंदर तामसिकता नहीं पनप पाती, क्योंकि कहा है कि “जैसा खाओ अन्न वैसा बने मन"। अच्छे आहार से
अच्छे विचार आते हैं। घर के वातावरण में सुख, शांति व समृद्धि रहती है।
अत्यधिक वासना करने से हम कई प्रकार की बीमारियों से घिर जाते हैं।
शरीर का ओज, तेज नष्ट हो जाता है। चेहरे की कांति ख़त्म हो जाती है। चेहरा
झुर्रियों से भर जाता है। शरीर कमज़ोर हो जाता है। मानसिक कमज़ोरियाँ हो जाती हैं।
आँखों में फ़र्क दिखने लगता है। हाथ-पैर कमज़ोर हो जाते हैं। याद्दाश्त कमज़ोर हो
जाती है। आधुनिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि अत्यधिक वासना से मस्तिष्क सिकुड़ने
लगता है।
ऐसी सैकड़ों चीज़े हमारे पूज्यनीय ऋषि-मुनियों, संतों, आचार्यों ने बताईं यदि हम उनकी बात
आत्मसात् करें तो हमारे जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन हो सकता है।