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संतुलित भोजन (Balanced diet) :
भोजन विटामिन (Vitamin), कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate), वसा (Fat), प्रोटीन (Protein), खनिज लवण (Minerals) युक्त होना चाहिए। शरीर के संतुलन को बनाए रखने के लिए 75% क्षार प्रधान और 25% अम्ल प्रधान भोजन की आवश्यकता होती है। एक ही प्रकार का आहार अधिक मात्रा में न लिया जाए,
बल्कि कई गुणों व रसों से युक्त आहार लेना चाहिए।
भोजन के प्रकार (Types of Diet) :
त्रिगुण सिद्धांत के आधार पर भोजन तीन प्रकार के होते हैं
-
1. सात्विक भोजन (
2. राजसी भोजन
3. तामसिक भोजन
1.सात्विक भोजन - ऐसे भोज्य पदार्थ जो जीव को प्राण,
स्वास्थ्य, प्रसन्नता दें तथा जीवन रस युक्त प्राकृतिक और प्रकृति
से सरल रूप से प्राप्त किए गए हों,
आयुवर्द्धक तथा
बुद्धिवर्द्धक होते हैं। ये भोजन मन को शांत कर कुशाग्र बुद्धि और संतुलित आचरण पैदा करते हैं। ऐसे भोजन अन्नमय,
प्राणमय, मनोमय तथा विज्ञानमय कोषों को समान रूप से पोषित करते हैं तथा समस्त कोषों में संतुलन
बनाए रखते हैं।
दाल, चावल, गाय का दूध, घी, मीठे फल आदि तथा वे पदार्थ जो पेड़-पौधों तथा दूध घी से बने हों उन्हें सात्विक भोजन कहा जाता है। आयु,
बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख, प्रीति बढ़ाने वाले रसयुक्त चिकने,
स्थिर रहने वाले आहार सात्विक भोजन कहलाते हैं।
2. राजसी भोजन - ऐसे भोज्य पदार्थ जो तीखे,
अम्लीय, क्षारीय, अत्यधिक गर्म,
जलन पैदा करने वाले तरह-तरह के
मसाले, तेल,
घी आदि में भूनकर स्वाद के लिए
ज़ायकेदार बनाए जाते हैं। गरम
मसाले, चाय,
कॉफ़ी, तम्बाकू, काली मिर्च इत्यादि ये राजसी भोजन की श्रेणी में आते हैं। ऐसे भोजन शरीर की प्रक्रिया को अत्यधिक तीव्र करते हैं जिनसे शरीर में अत्यधिक प्राण का संचार होने लगता है जा ठीक नहीं है। अतः ये पंचकोषों में असंतुलन का कारण बन जाते हैं। गीता के अनुसार कड़वे,
खट्टे, लवणयुक्त भोजन,
दुःख और शोक उत्पन्न करने वाले हो जाते हैं। "रिच डाइट' जैसे हलुआ, पूडी ज्यादा तला हुआ भोजन भी
राजसी भोजन कहलाता है। अतः ये सभी राजसी भोजन के अंतर्गत आते हैं।
3. तामसिक भोजन - ऐसे भोज्य पदार्थ जो बासी हों,
मत हो रूप से सड़ाया गया हो। मांस,
मछली, अंडे, बासी भोजन तथा ज्या लेने पर एवं शराब का सेवन भी तामसिक प्रवृति
को जन्म देता है। बासी डिब्बों में बंद भोजन तामसिक भोजन की श्रेणी में आते हैं। गीता के भोजन बहुत समय
पहले पकाया हुआ हो,
रस रहित हो,
दुर्गन्ध युक्त औ हो,
तामसिक भोजन कहलाता है एवं
लहसुन प्याज भी तामसिक आहार के अंतर्गत आते हैं।
विभिन्न प्रकार के भोजनों का मन पर प्रभाव (Effects of Different Types of Diet ) :
कहते हैं व्यक्ति जैसा भोजन करेगा वैसे ही उसके विचार और कार्य होंगे। जैसा अन्न वैसा मन। भोजन के प्रकार तथा
गुणों का प्रभाव व्यक्ति के शरीर तथा मन दोनों पर पड़ता है।
1. सात्विक भोजन का प्रभाव (Effects of Satvik food) - सात्विक भोजन करने से सत्वगुण सम्बंधी विचार एवं क्रियाएँ होती हैं। ऐसे भोजन से सत्वगुण जैसे - सत्य, ज्ञान, बल्दिी कुशाग्रता, शांति, मन की स्थिरता व गंभीरता, हृदय की शुद्धता, मन की सरलता आनंद, सुख आदि सकारात्मक परिणाम होते हैं। संयम तथा सहनशीलता का विकास होता है। शरीर विकार रहित होकर स्वस्थ बना रहता है। चित्त में निर्मलता रहती है।
2. राजसी भोजन का प्रभाव (Effects of Rajsi food) - राजसी भोजन से मन की चंचलता, व्यवहार में ईर्ष्या, द्वेष एवं झगड़े की प्रवृत्ति, वाणी में कठोरता एवं कर्कशता, तनाव एवं दुःख आदि परिणाम प्राप्त होते हैं। इस प्रकार का भोजन क्रोध, उत्तेजना तथा वासनाओं को जन्म देता है। मन सदा चंचल रहता है। शरीर में भारीपन की अनुभूति होती है। चित्त एकाग्र नहीं रह पाता एवं तंत्रिका तंत्र उत्तेजित रहता है।
3. तामसिक भोजन का प्रभाव (Effects of Tamsik food) - तामसिक भोजन के सेवन से आलस्य, अज्ञान, मोह, मद, क्रोध, भारीपन आदि दुष्प्रभाव होते हैं। इससे विचार और व्यवहार में कठोरता, क्रूरता एवं हिंसा आदि आती है। व्यक्ति स्वार्थी, झगड़ालू, असहिष्णु प्रकृति का हो जाता है। उसका व्यवहार रूखा और राक्षसी प्रवृत्ति का हो जाता है जो परेशानी व दुःख का कारण बनता है।
अनुपयुक्त भोजन (आहार) के प्रभाव तथा दुष्प्रभाव :
भोजन या अनुपयुक्त आहार या
अप्राकृतिक भोजन से शरीर के अंदर अनेक प्रकार के विकार इकट्ठे हो जाते हैं। अनेक रोग शरीर को घेर लेते हैं। शरीर की शक्ति क्षीण हो जाती है। आज के युग की अधिकांश बीमारियाँ (Diseases) ग़लत आहार का परिणाम है । मधुमेह (diabetes), उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure), मोटापा (Obesity), आत एवं लीवर के
अनेक रोग इसी कारण से होते हैं
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