Types and Importants of Nutritions in hindi by healthcruz |
न्यूट्रीशन के महत्व और प्रकार (Importance and types of nutrition) :
कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) - इसके मुख्य स्रोत हैं स्टार्च व शर्करा (Starch and sugar), ये तत्त्व चावल (Rice),
आलू (Potato) व गेहूं (Wheat) आदि में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इससे हमारे शरीर को ऊर्जा (Energy) प्राप्त होती
है, किन्तु
इसकी मात्रा संतुलित ही होनी चाहिए। अधिक मात्रा में लेने पर यह वसा (Fat) में तब्दील
होकर शरीर को मोटा (Obesity) करना शुरू कर देती है। स्थूल शरीर अच्छा नहीं होता, वह स्वयं ही रोगों
का घर बनने लगता है।
वसा (Fat) - वसा, जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है कि ये शरीर
को स्थूल बना देती है, किन्तु संतुलित मात्रा शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है। इसका पाचन (Digestion) भी
कार्बोहाइड्रेट्स की तुलना में कठिनाई से होता है। इसके बावजूद शरीर की पच्चीस से
तीस प्रतिशत ऊर्जा की आवश्यकता वसा द्वारा ही पूरी होती है। इसकी प्राप्ति हमें
मांस (Meat), दूध (Milk),
घी (Ghee) व मक्खन (Butter) आदि से
होती है।
प्रोटीन (Protein) - प्रोटीन प्राप्ति के मुख्य स्रोत (Sources) मांस, मछली (Fish), पनीर (Cheese), मेवे, दूध व अण्डे (Eggs) हैं। प्रोटीन हमारे शरीर के
लिए बहुत ही आवश्यक है। हमारे शरीर के ऊतकों (Tissues) का लगभग दस प्रतिशत भाग प्रोटीन से
बना है। प्रोटीन एमिनो अम्लों (Amino acids) से मिलकर बनते हैं। वैसे प्रोटीन्स की संख्या बीस है
किन्तु इनके आपसी मेल से लाखों नए प्रोटीन बनते हैं। शरीर के लिए इन बीसों
प्रोटीन्स से बनने वाले लाखों प्रोटीन्स की आवश्यकता होती है। कहने का तात्पर्य है
कि प्रोटीन्स हमारे शरीर के लिए बेहद आवश्यक हैं।
विटामिन्स (Vitamins) – शरीर की रासायनिक प्रक्रिया (Chemical process) को सुचारु रूप से चलाने के लिए 15 विभिन्न प्रकार के
विटामिन्स की जरूरत होती है। इनमें से केवल एक ही विटामिन हमारे शरीर में बनता है
और वह है विटामिन डी। बाकी जितने भी विटामिन्स हैं, शरीर में उनकी पूर्ति का हमारे पास केवल
आहार (Diet) ही साधन है। विटामिन्स हमारे शरीर के लिए कितने आवश्यक हैं इसका पता इसी बात
से चलता है कि इनकी कमी से हमारे शरीर में अनेक रोग पैदा हो जाते हैं।
विटामिन ए (Vitamin A) - यह हमें अण्डा, दूध, कलेजी, मछली का तेल (Fish Oil), पत्ता गोभी (Cabbage), पालक (Spinach), कद्दू (Pumpkin) व गाजर (Carrot) आदि से प्राप्त होता है।
इसकी कमी से आंखों की ज्योति नष्ट होने लगती है। संक्रामक रोग शरीर पर हमला कर
देते हैं।
विटामिन बी (Vitamin B) – यह विटामिन्स कई प्रकार के होते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग दस प्रकार के होते हैं। यह हमें दूध, ताजे फल-सब्जियों (Vegetables) से मिलते हैं, किन्तु आटा (Flour) , चना (grams), खमीर (Yeast) व दालों (Beans) आदि में यह प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इनकी कमी से व्यक्ति तनावग्रस्त (Stressed) व चिड़चिड़ा बना रहता है। स्नायु (Muscle) आदि सूज जाते हैं जिनके कारण कुछ अंग शिथिल या निष्क्रिय हो जाते हैं। इनकी सहायता से शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता बनी रहती है।
विटामिन सी (Vitamin C) - यह सभी विटामिनों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इसकी पूर्ति ताजे
फल व हरी सब्जियों से भली-भांति की जा सकती है। इसकी कमी से स्कर्वी (Scurvy) रोग हो जाता
है, अंगों
के जोड़ कठोर पड़ जाते हैं और उनमें कमजोरी (Weakness) आ जाती है। संतरा (Orange), नीबू (Lemon), टमाटर (Tomato) आदि में यह
विटामिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। हमारे शरीर की संरचना ऐसी है कि वह
विटामिन-सी को संचित (Store) करके नहीं रख सकता अतः इसकी पूर्ति हमें प्रतिदिन के
आहार से ही करनी पड़ती है।
विटामिन डी (Vitamin D) - विकसित होते बच्चों के लिए यह बेहद आवश्यक है। इसकी
पर्याप्त मात्रा यदि शरीर में हो तो बच्चे बहुत से रोगों से बचे रहते हैं। यदि
बच्चों में इसकी कमी हो तो उनका विकास ठीक ढंग से नहीं हो पाता। उनमें अस्थि विकार (Bone disorder) उत्पन्न हो जाते हैं। हड्डियों के कमजोर होने के कारण उनमें कई प्रकार की
विकृतियां (Distortions) आ जाती हैं। इस विटामिन की पूर्ति हमें मछली के तेल, कलेजी व अण्डे की
जर्दी (Egg yolk) से करनी चाहिए। सूर्य से यह हमें मुफ्त में ही प्राप्त हो जाती है। सूर्य के
सामने कुछ देर पीठ करके बैठना चाहिए।
विटामिन ई (Vitamin E) - इसका सीधा सम्बंध सेक्स से है। खासतौर पर महिलाओं
के लिए यह बेहद आवश्यक है। क्योंकि इसकी कमी से स्त्रियों को गर्भधारण (Pregnancy) करने में कठिनाई
होती है। गर्भ यदि रह भी जाए तो गर्भपात (Abortion) का खतरा बराबर बना रहता है। बार-बार
गर्भपात का होना विटामिन ई की कमी का ही सूचक है। हमारे शरीर में इसकी पूर्ति
गेहूं के छिलके व विभिन्न प्रकार के बीजों के छिलकों से होती है। अंडे की जर्दी और
पनीर में भी इसकी कुछ मात्रा पाई जाती है।
विटामिन के (Vitamin K) - यह विटामिन हरी सब्जियों से प्राप्त होता है। इसका प्रमुख कार्य चोट
लगने पर रक्तस्राव (Bleeding) को रक्त के थक्के (blood clotting) बनाने की क्रिया द्वारा रोकना है। यह हमें हरी
सब्जियों से प्राप्त होता है।
खनिज तत्त्व (Minerals) - विटामिन्स, कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन आदि की भांति हमारे शरीर को कुछ
खनिज तत्त्व जैसे नमक (Salt), क्लोरी, आयरन व आयोडीन आदि की भी आवश्यकता होती है। ये तत्त्व हमारे शरीर के
विकास के लिए बेहद उपयोगी हैं।
आयरन (Iron) - शरीर के विकास व शारीरिक स्वस्थता के लिए यह अति आवश्यक है। लौह
तत्त्व अर्थात् आयरन शरीर में मौजूद हीमोग्लोबिन (Hemoglobin) की रचना में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाते हैं। यह पदार्थ (हीमोग्लोबिन) रक्त में मौजूद लालकणों में पाया जाता है,
यदि किसी कारणवश
शरीर के रक्त में लाल कणों की कमी हो जाए तो शरीर में आयरन की कमी हो जाती है,
जिससे शरीर कमजोर हो
जाता है। लौह तत्त्व की कमी से चेहरा पीला (Yellow face) पड़ जाता है और रोगी अपने आपको बेहद
कमजोर महसूस करने लगता है। लौह तत्त्व की कमी से फेफड़े भी प्रभावित होते हैं,
वे ठीक ढंग से काम
नहीं कर पाते। जब फेफड़ों में विकार आ जाता है तो रक्त को ऑक्सीजन (Oxygen) पहुंचने में
परेशानी होने लगती है, परिणामस्वरूप शरीर कमजोर हो जाता है।
शरीर में लौह तत्त्व की कमी नहीं आने देनी चाहिए। वैसे भी इसकी पूर्ति
के लिए बहुत से साधन हैं। यह हमें केला (Banana), आम (Mango), मूंगफली (peanut), मेवे, शलजम (Turnip), चुकन्दर (Beetroot), पालक, अण्डे, चीकू (Sapodila) और आलूबुखारा (plum) आदि से भरपूर मात्रा में मिल
जाते हैं, अतः इन
पदार्थों का सेवन भरपूर मात्रा में करना चाहिए।
आयोडीन (Iodine) – शरीर को विभिन्न प्रकार के रोगों से सुरक्षित रखने में इसकी बड़ी भूमिका है। इसका मुख्य कार्य थायरॉइड (Thyroid) नामक ग्रंथि को पुष्ट रखना है। इस ग्रंथि के डिस्टर्ब होने से शरीर को काफी क्षति उठानी पड़ती है। इसके कारण शरीर में और भी दूसरे रोग उत्पन्न होने का भय रहता है। 'घेंगा (गलगंड)' (Goiter) जो कि गले का एक रोग है, वह तो होता ही आयोडीन की कमी के कारण है। इसकी पूर्ति के लिए भोजन में आयोडीनयुक्त नमक का प्रयोग करके करनी चाहिए।
सल्फर (Sulphur) - यह तत्त्व शरीर के दूषित तत्त्वों को निकाल बाहर
करने में सहायक होता है। इससे त्वचा आकर्षक बनती है। त्वचा सम्बंधी रोगों का शरीर
में उत्पन्न होना ही इस बात का सूचक है कि शरीर में सल्फर की कमी है। शरीर में जब
गठिया (Gout) जैसा विकार उत्पन्न होने लगे, तब भी इसकी कमी का संकेत मिलता है।
इसकी कमी को दूर करने के लिए प्याज (Onion), मूली (Radish), फूल गोभी (Cauliflower) व बंद गोभी (Cabbage) आदि पदार्थों का भरपूर सेवन
करना चाहिए।
क्लोरीन (Chlorine) - यह हमें गाजर, मूली, टमाटर, पालक, प्याज, बंदगोभी व बकरी के द्ध (Goat Milk) से प्राप्त होने वाला
आवश्यक तत्त्व है। क्लोरीन हमारी आंतों व पेट की सफाई करने में सहायता करती है।
इससे शरीर में मौजूद विषैले तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। इससे पाचन तंत्र को शक्ति
मिलती है। इसकी कमी से उदर विकार उत्पन्न होने लगते हैं, शरीर में चर्बी बढ़ने लगती है, कब्ज (Constipation) रहता है और
शरीर की ठीक ढंग से सफाई न होने के कारण त्वचा सम्बंधी अनेकों रोग-विकार उत्पन्न
हो जाते हैं।
सोडियम (Sodium) - इससे शरीर की मांसपेशियों को सुदृढ़ता प्राप्त होती है। शरीर के दूसरे अंग भी बल पाते हैं। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है, दांतों व हड्डियों को सुरक्षा प्रदान करता है। कब्ज मिट जाता है। रक्त में कार्बोलिक एसिड को दूर करता है। यदि शरीर में इसकी कमी हो जाए तो शरीर के उपरोक्त सभी तंत्र प्रभावित हो जाएंगे। शरीर में इसकी कमी न हो, इसके लिए गाजर, मूली, पालक, कुलथा, शलजम, सेब (Apple), अंजीर (Figs), खीरा (Cucumber), आलूबुखारा आदि पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
मैग्नीशियम (Magnesium) - मैग्नीशियम का काम भी सोडियम की भांति
महत्वपूर्ण और लगभग वैसा ही है। इसके अभाव से भी शरीर के वह सभी तंत्र प्रभावित
होंगे जो शरीर में सोडियम की कमी से प्रभावित होंगे। शरीर में इसकी पूर्ति के लिए
पालक, टमाटर,
अंजीर, अंगूर, रसभरी आदि
फल-सब्जियों का सेवन करते रहना चाहिए।
पोटाशियम (Potassium) - शरीर में यदि इसकी मात्रा कम हो जाए, तो शरीर सुस्त हो जाता है। जुकाम (Cold), न्यूमोनिया (Pneumonia) आदि
विकार उत्पन्न हो जाते हैं। इसका मुख्य कार्य शरीर की सफाई, मांस-पेशियों को बल प्रदान करना, जोड़ों को लचकदार
बनाना, रक्त
संचार को दुरुस्त रखना व शरीर में ऑक्सीजन को सुचारु रूप से प्रभावित करना है।
इसकी पूर्ति सभी प्रकार की सब्जियां करती हैं।
कैल्शियम / फॉसफोरस (Calcium / Phosphorus) - इसकी सबसे अधिक आवश्यकता बच्चों को होती
है। क्योंकि इसका मुख्य कार्य हड्डियों व दांतों को मजबूती प्रदान करना है। दूध व
पनीर एवं अन्य दुग्ध पदार्थों से इसकी कमी दूर की जा सकती है।
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